गंगा इमली @ Suwartala
गंगा इमली अवि जब लाकडाउन में घर आया तो बहोत से पुराने दिन बचपन के याद आये जो गर्मी के समय में हम लोग घूमने जाते थे तो गुलेल , झोला , टगिया ,माचिस ,दगनी (लम्बा पतली लकड़ी ) और पानी भरकर टिपिन लेकर घर से घूमने निकलते थे यह बहोत कांटेदार वाली होती थी इस कारण ऊपर चढ़ने में परेशानी होती थी. डंडों से शाखाओं को प्रहार कर गिराते थे और अपनी अपनी जेबों में ठूंस ठूंस कर भर लाते थे. इसी समय में गाओं में गंगा इमली का पकना चालू हो जाता है आज जब मई फिर से गुमने गया तो देखा मेरे कोठार (बाढ़ी ) में गंगा इमली पके हुए थे तो मैं उसमे चढ़कर एक पतली लड़की जो ज्यादातर बांस का होता है और मजबूत वि होता है उसमे टेड़े लकड़ी को बांधकर गंगा इमली तोड़ने के लिए उसे खींचने के लायक बनाया और मैं पेड़ में चढ़ गया यह पेड़ बहोत काँटेवाले होते है बिना दागनी या लकड़ी के ऐसे तोड़ा नहीं जा सकता है गंगा इमली को खाने के बाद प्यास बहुत लगती है यह हमारे गावो में बहुत सारे है यह बहुत मीठी होती है यह जलेबी की तरह दिखाई देता है यह पकने के बाद लाल रंग का हो जाता है