Posts

Showing posts from July, 2020

कुलेश्वर नाथ (राजिम) चम्पेश्वर नाथ (चम्पारण्य) ब्राह्मकेश्वर (ब्रह्मणी), पाणेश्वर नाथ (किंफगेश्वर) कोपेश्वर नाथ ( कोपरा) Kuleshwar Mahadev Rajim , Champeshwar Nath Champaranya , Barmhakeshwar nath Bamhani , Paneshwar Nath Fingeshwar , Kopeshwar Nath Kopra Panch Koshi Temple राजिम - छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक केन्द्र प्राचीनकाल से राजिम छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। इतिहासकारों, कलानुरागियों और पुरातत्वविदों के लिए राजिम एक आकर्षण का केन्द्र है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से राजिम 45 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा गया है। राजिम में पैरी, सोंढूर और महानदी का ""त्रिवेणी संगम'' है। राजिम में राजीवलोचन और कुलेश्वरनाथ का मंदिर बहुत विख्यात है। राजीवलोचन मंदिर राजिम के सभी मंदिरों में सबसे पुराना है। यह स्थान शिव और वैष्णव धर्म का संगम तीर्थ है। राजिम के बारे में बहुत सी किंवदंतियां प्रचलित हैं। यहां पंचकोसी यात्रा की जाती है जिसके बारे में कहानी इस प्रकार है - एक बार विष्णु ने विश्वकर्मा से कहा कि धरती पर वे एक ऐसी जगह उनके मंदिर का निर्माण करेंे, जहां पांच कोस के अन्दर शव न जला हो। अब विश्वकर्मा जी धरती पर आए, और ढूंढ़ते रहे, पर ऐसा कोई स्थान उन्हें दिखाई नहीं दिया। उन्होंने वापस जाकर जब विष्णु जी से कहा तब विष्णु जी एक कमल के फूल को धरती पर छोड़कर विश्वकर्मा जी से कहा कि ""यह जहां गिरेगा, वहीं हमारे मंदिर का निर्माण होगा''। इस प्रकार कमल फूल के पराग पर विष्णु भगवान का मन्दिर है और पंखुड़ियों पर पंचकोसी धाम बसा हुआ है। कुलेश्वर नाथ (राजिम) चम्पेश्वर नाथ (चम्पारण्य) ब्राह्मकेश्वर (ब्रह्मणी), पाणेश्वर नाथ (किंफगेश्वर) कोपेश्वर नाथ ( कोपरा)। यात्रा के दिन यात्री पहले राजीव लोचन के मंदिर में जाकर देव विग्रह की पूजा अर्चना करते हैं, इसके बाद पंचकोसी यात्रा करने के बाद फिर राजीव लोचन के मंदिर में जाते हैं। पूजा करने के बाद आटका का प्रसाद और चावल, कपड़े एवं पैसे अपृत करते हैं। आटका है चावल से बने पीड़िया नाम की मिठाई। यह छत्तीसगढ़ की मुख्य उपज धान का प्रतीक स्वरुप नैवेद्य है। राजीव लोचन के मंदिर में पूजा करने के बाद यात्री जाते हैं संगम पर स्थित उत्पलेश्वर शिव (कुलेश्वर नाथ) मंदिर में। वहां दर्शन पूजा करके पटेश्वर महादेव के दर्शन करने पटेवा गांव जाते हैं। यात्रा का यह प्रथम पड़ाव है। पटेवा का प्राचीन नाम है पट्टनापुरी। पटेवा राजिम से 5 कि.मी. दूर है। पटेश्वर महादेव ""सद्योजात'' नाम वाली भगवान शम्भु की मूर्ति कहें जातें हैं। इनकी अद्धार्ंगिनी हैं भगवती अन्नपूर्णा, हम कह सकते हैं कि ये अन्नमयकोश की प्रतीक हैं। वहां पूजा करते समय जो मन्त्र उच्चारण करते हैं, उसमें अन्न की महिमा का वर्णन किया गया है। उस मन्त्र में कहते हैं कि अन्न ही ब्रह्म है, इस प्रकार पटेश्वर महादेव ""अन्नब्रह्म'' के रुप में पूजे जाते हैं। यात्री यहां पहुंचकर रात में विश्राम करते हैं और सुबह शिवजी के तालाब में नहाकर पूजा अर्चना करके चल पड़ते हैं, अगले पड़ाव की ओर। चम्पकेश्वर महादेव - चम्पकेश्वर महादेव का स्वयं-भू लिंग यहां जब प्रतिष्ठित हुआ तब शिव भगवान को ही पूजते थे यहां, बाद में वल्लभाचार्य के कारण यह एक वैष्णव पीठ के रुप में भी प्रतिष्ठित हुआ। शैव एवं वैष्णव सम्प्रदायों के संगम स्थल के रुप में एकता का प्रतीक बन गया। इसके बाद यात्री जाते हैं ब्राह्मनी नाम के गांव में जहां ब्रह्मकेश्वर महादेव की पूजा अपंण करते हैं। ब्रह्मकेश्वर महादेव - चम्पारण से 9 कि.मी. दूरी पर उत्तर पूर्व की ओर ब्रह्मनी नाम का एक गांव है जो ब्रह्मनी नदी या बधनई नदी के किनारे अवस्थित है। ब्रह्मकेश्वर महादेव में शम्भू की ""अधोर'' वाली मूर्ति है। उमा देवी इनकी शक्ति हैं। अधोर महादेव या ब्रह्मकेश्वर महादेव, ब्रह्म के आनन्दमय स्वरुप में पूजे जाते हैं। ऐसा विश्वास करते हैं लोग कि इस अभिनन्दमय स्वरुप को जो एकबार पहचान लेते हैं, वे कभी भी भयभीत नहीं होते। बधनई नदी के किनारे एक कुंड है जिसके उत्तरी छोरपर ब्रह्मकेश्वर महादेव का मन्दिर है। इस कुंड में जल का स्रोत है जिसे श्वेत या सेत गंगा के नाम से जानते हैं लोग। ब्रह्मकेश्वर महादेव की पूजा करने के बाद यात्री चल पड़ते हैं किंफगेश्वर नगर की ओर। राजिम से 16 कि.मी. (पूर्व दिशा) की दूरी पर है यह किंफगेश्वर नगर। यहां स्थित है फणिकेश्वर महादेव का मंदिर, फणिकेश्वर महादेव में है शम्भू की ""ईशान'' नाम वाली मूर्ति। इनकी अद्धार्ंगिनी हैं अंबिका। ऐसा कहते हैं कि फणिकेश्वर महादेव प्रतीक है ""विज्ञानमय कोश'' के और वे भक्तों को शुभगति देते हैं। यहां से यात्री चल पड़ते हैं कोपरा गाँव की ओर। राजिम से १६ कि.मी. की दूरी पर यह गांव है। यहां है कर्पूरेश्वर महादेव का मंदिर। कुछ लोग उन्हें कोपेश्वर नाथ नाम से जानते हैं। ये जगह है पंचकोसी यात्रा का आखरी पड़ाव। कोपरा गांव के पश्चिम में ""दलदली'' तालाब है, उसी तालाब के भीतर, गहरे पानी में यह मंदिर हैं। इस तालाब को शंख सरोवर भी कहा जाता है। watch fully video - https://youtu.be/vqLL5wsbvW4 Facebook :- https://www.facebook.com/Chhattisgarr... Twitter : - https://twitter.com/Chhattisgarridr Instagram :- https://www.instagram.com/chhattisgar... My Blog : - https://chhattisgarhrider.blogspot.com/ #panchkoshimandir #पंचकोशीधाम

Image
कुलेश्वर नाथ (राजिम) चम्पेश्वर नाथ (चम्पारण्य) ब्राह्मकेश्वर (ब्रह्मणी), पाणेश्वर नाथ (किंफगेश्वर) कोपेश्वर नाथ ( कोपरा) Kuleshwar Mahadev Rajim , Champeshwar Nath Champaranya , Barmhakeshwar nath Bamhani , Paneshwar Nath Fingeshwar , Kopeshwar Nath Kopra Panch Koshi Temple राजिम - छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक केन्द्र प्राचीनकाल से राजिम छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। इतिहासकारों, कलानुरागियों और पुरातत्वविदों के लिए राजिम एक आकर्षण का केन्द्र है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से राजिम 45 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा गया है। राजिम में पैरी, सोंढूर और महानदी का ""त्रिवेणी संगम'' है। राजिम में राजीवलोचन और कुलेश्वरनाथ का मंदिर बहुत विख्यात है। राजीवलोचन मंदिर राजिम के सभी मंदिरों में सबसे पुराना है। यह स्थान शिव और वैष्णव धर्म का संगम तीर्थ है। राजिम के बारे में बहुत सी किंवदंतियां प्रचलित हैं। यहां पंचकोसी यात्रा की जाती है जिसके बारे में कहानी इस प्रकार है - एक बार विष्णु ने विश्वकर्मा से कहा कि धरती पर वे एक ऐसी जगह

#रायगढ़_में_है_आज_से_1500_वर्ष_पुराना_रहस्यमयी_प्राचीन_शिव_मंदिर

Image
# रायगढ़_में_है_आज_से_1500_वर्ष_पुराना_रहस्यमयी_प्राचीन_शिव_मंदिर ▫️ ▪️ ▫️ ▪️ ▫️ ▪️ ▫️ ▪️ ▫️ ▪️ ▫️ ▪️ ▫️ ▪️ ▫️ 15 सौ वर्ष पूर्व के शिव मंदिर का दर्शन कराया हैं। यह मंदिर छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के सरिया विकाशखण्ड में स्थित ग्राम पुजेरिपाली में है। यह क्षेत्र अत्यंत प्राचीन है यहां आज भी प्राचीन स्मारकों और मूर्तियों के अवशेष प्राप्त होते है। इस शिव मंदिर को देउल केवटिन मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के अलावा यहां और भी कई प्राचीन मंदिर, स्मारक और मूर्तिया विद्यमान है जिसमे प्रमुख है  बोर्राहसिनी मंदिर, गोपाल मंदिर, भैरव मंदिर और रानी झूलना। यहां एक प्राचीन बरगद का वृक्ष भी है जो कि काफी बड़ा वृक्ष है। पास में ही एक प्राचीन कुआं भी है जिसके जल से शिवलिंग का जलाभिषेक किया जाता है। मंदिर के पुजारी अभिमन्यु गिरी गोस्वामी जी ने मंदिर परिसर में रुद्राक्ष का वृक्ष लगा रखा है। शिवलिंग की खासियत की अगर बात करें तो यह शिवलिंग स्वयंभू शिवलिंग है जिसमे जल अर्पण करने से जल सीधा पाताललोक में समाहित हो जाता है जलहरी से बाहर नही निकलता है चाहे आप जितना जल अर्पण कर ले।

तुर्रीधाम के नाम से जाना जाने वाला यह मंदिर भगवान शिव का है। प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर तीन दिनों का मेला आयोजित किया जाता है। तुर्रीधाम जांजगीर जिले के सक्ती तहसील से लगभग 18 km. दूर है। देश में ऐसे अनेक ज्योतिर्लिंग हैए जहां दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। भक्तों में असीम श्रद्धा भी देखी जाती है। सावन के महीने में शिव मंदिरों की महिमा और ज्यादा बढ़ जाती हैए क्योंकि इस माह जो भी मन्नतें सच्चे मन से मांगी जाती हैए ऐसी मान्यता हैए वह पूरी होती हैं। लोगों में भगवान के प्रति अगाध आस्था ही हैए जहां हजारों.लाखों की भीड़ खींची चली आती है। ऐसा ही एक स्थान हैए तुर्रीधाम। छत्तीसगढ़ के जांजगीर.चांपा जिले के सक्ती क्षेत्र अंतर्गत ग्राम तुर्री स्थित है। यहां भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर हैए जहां पहाड़ का सीना चीर अनवरत जलधारा बहती रहती है। खास बात यह है कि यह जलधारा कहां से बह रही हैए अब तक पता नहीं चल सका है। आज भी यह शोध का विषय बना हुआ है कि आखिर पहाड़ी क्षेत्रों से पानी का ऐसा स्त्रोत कहां से हैए जहां हर समय पानी की धार बहती रहती है। इस धाम की विशेषता - दिलचस्प बात यह है कि बरसात में जलधारा का बहाव कम हो जाता हैए वहीं गर्मी में जब हर कहीं सूखे की मार होती है, उस दौरान जलधारा में पानी का बहाव बढ़ जाता है। इसके अलावा जलधारा के पानी की खासियत यह भी है कि यह जल बरसों तक खराब नहीं होता। यहां के रहवासियों की मानें तो 100 साल बाद भी जल दूषित नहीं होता। यही कारण है कि तुर्रीधाम के इस जल को ‘‘गंगाजल’’ के समान पवित्र माना जाता है और जल को लोग अपने घर ले जाने के लिए लालायित रहते हैं। एक बात और महत्वपूर्ण है कि शिव मंदिरों में जब भक्त दर्शन करने जाते हैं तो वहां भगवान शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैंए मगर यहां कुछ अलग ही है। जलधारा के पवित्र जल को घर ले जाने श्रद्धालुओं में जद्दोजहद मची रहती है तथा वे कोई न कोई ऐसी सामग्री लेकर पहुचंते हैंए जिसमें जल भरकर ले जाया जा सके। इन्हीं सब विशेषताओं के कारण तुर्रीधाम में दर्शन के लिए छत्तीसगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश, झारखंड, उड़ीसा तथा बिहार समेत अन्य राज्यों से भी दर्शनार्थी आते हैं और यहां के मनोरम दृश्य देखकर हतप्रद रह जाते हैं। यहां की अनवरत बहती जलधारा सहसा ही किसी को आकर्षित कर लेती हैं। साथ ही लोगों के मन में समाए बगैर नहीं रहता और जो भी एक बार तुर्रीधाम पहुंचता हैए वह यहां दोबारा आना चाहता है। सावन के महिने में लगता है 15 दिनों का मेला - करवाल नाले के किनारे स्थित तुर्रीधाम में भगवान शिव का मंदिर है। यहां अन्य और मंदिर हैए जो पहाड़ के उपरी हिस्से में स्थित है। अभी सावन महीने में भी हर सोमवार को तुर्रीधाम में हजारों की संख्या में पहुंचे। इस दौरान यहां 15 दिनों का मेला लगता हैए जहां मनोरंजन के साधन प्रमुख आकर्षण होता है। महाशिवरात्रि में भी भक्तों की भीड़ रहती है और सावन सोमवार की तरह उस समय भी दर्शन के लिए सुबह से देर रात तक भक्तों की कतार लगी रहती हैं। ऐतिहासिक/पौराणिक कथा - किवदंति है कि तुर्रीधाम में बरसों पहले एक युवक को सपने में भगवान शिव ने दर्शन दिए और कुछ मांगने को कहा। उस समय ग्राम . तुर्री में पानी की समस्या रहती थी और गर्मी में हर जगह पानी के लिए त्राहि.त्राहि मची रहती थी। भगवान शिव को उस युवक ने पानी-पानी कहा और एक जलधारा बहने लगी, जिसकी धार अब तक नहीं रूकी है। इसके बाद से यहां भगवान शिव का मंदिर बनवाया गया। इस तरह तुर्री ने एक धाम का रूप ले लिया और भक्तों की श्रद्धा भी बढ़ने लगी। लोगों की भक्ति इसलिए और बढ़ जाती है, क्योंकि तुर्री में पानी की समस्या अब कभी नहीं हुई। साथ ही गर्मी में जलधारा के पानी का बहाव तेज होना भी लोगों की जिज्ञासा का विषय बना हुआ है। तुर्रीधाम के भगवान शिव के दर्शन से संतान प्राप्ति होती है। इसी के चलते छग के अलावा दूसरे राज्यों बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश समेत अन्य जगहों से भी निःसंतान दंपती भगवान शिव के दर्शनार्थ पहुंचते हैं। तुर्रीधाम में जो जलधारा बहती है, वह प्रकुति उपहार होने के कारण इसे देखने वाले वैसे तो साल भर आते रहते हैं, मगर सावन महीने के हर सोमवार तथा महाशिवरात्रि पर भक्तों की भीड़ हजारों की संख्या में रहती है। अपनी खास विशेषताओं के कारण ही आज की तुर्रीधाम छग ही नहीं, वरन देश के अन्य राज्यों में भी अपनी एक अलग पहचान है। copyright - cgnews02.com #तुर्रीधाम #तुर्रीधामजांजगीर #सक्ती #जांजगीर

Image
तुर्रीधाम के नाम से जाना जाने वाला यह मंदिर भगवान शिव का है। प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर तीन दिनों का मेला आयोजित किया जाता है। तुर्रीधाम जांजगीर जिले के सक्ती तहसील से लगभग 18 km. दूर है।     देश में ऐसे अनेक ज्योतिर्लिंग हैए जहां दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। भक्तों में असीम श्रद्धा भी देखी जाती है। सावन के महीने में शिव मंदिरों की महिमा और ज्यादा बढ़ जाती हैए क्योंकि इस माह जो भी मन्नतें सच्चे मन से मांगी जाती हैए ऐसी मान्यता हैए वह पूरी होती हैं। लोगों में भगवान के प्रति अगाध आस्था ही हैए जहां हजारों.लाखों की भीड़ खींची चली आती है।     ऐसा ही एक स्थान हैए तुर्रीधाम। छत्तीसगढ़ के जांजगीर.चांपा जिले के सक्ती क्षेत्र अंतर्गत ग्राम तुर्री स्थित है। यहां भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर हैए जहां पहाड़ का सीना चीर अनवरत जलधारा बहती रहती है। खास बात यह है कि यह जलधारा कहां से बह रही हैए अब तक पता नहीं चल सका है। आज भी यह शोध का विषय बना हुआ है कि आखिर पहाड़ी क्षेत्रों से पानी का ऐसा स्त्रोत कहां से हैए जहां हर समय पानी की धार बहती रहती है। इस धाम की विशेषता -     दिलचस्प बात यह