कुलेश्वर नाथ (राजिम) चम्पेश्वर नाथ (चम्पारण्य) ब्राह्मकेश्वर (ब्रह्मणी), पाणेश्वर नाथ (किंफगेश्वर) कोपेश्वर नाथ ( कोपरा) Kuleshwar Mahadev Rajim , Champeshwar Nath Champaranya , Barmhakeshwar nath Bamhani , Paneshwar Nath Fingeshwar , Kopeshwar Nath Kopra Panch Koshi Temple राजिम - छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक केन्द्र प्राचीनकाल से राजिम छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। इतिहासकारों, कलानुरागियों और पुरातत्वविदों के लिए राजिम एक आकर्षण का केन्द्र है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से राजिम 45 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा गया है। राजिम में पैरी, सोंढूर और महानदी का ""त्रिवेणी संगम'' है। राजिम में राजीवलोचन और कुलेश्वरनाथ का मंदिर बहुत विख्यात है। राजीवलोचन मंदिर राजिम के सभी मंदिरों में सबसे पुराना है। यह स्थान शिव और वैष्णव धर्म का संगम तीर्थ है। राजिम के बारे में बहुत सी किंवदंतियां प्रचलित हैं। यहां पंचकोसी यात्रा की जाती है जिसके बारे में कहानी इस प्रकार है - एक बार विष्णु ने विश्वकर्मा से कहा कि धरती पर वे एक ऐसी जगह उनके मंदिर का निर्माण करेंे, जहां पांच कोस के अन्दर शव न जला हो। अब विश्वकर्मा जी धरती पर आए, और ढूंढ़ते रहे, पर ऐसा कोई स्थान उन्हें दिखाई नहीं दिया। उन्होंने वापस जाकर जब विष्णु जी से कहा तब विष्णु जी एक कमल के फूल को धरती पर छोड़कर विश्वकर्मा जी से कहा कि ""यह जहां गिरेगा, वहीं हमारे मंदिर का निर्माण होगा''। इस प्रकार कमल फूल के पराग पर विष्णु भगवान का मन्दिर है और पंखुड़ियों पर पंचकोसी धाम बसा हुआ है। कुलेश्वर नाथ (राजिम) चम्पेश्वर नाथ (चम्पारण्य) ब्राह्मकेश्वर (ब्रह्मणी), पाणेश्वर नाथ (किंफगेश्वर) कोपेश्वर नाथ ( कोपरा)। यात्रा के दिन यात्री पहले राजीव लोचन के मंदिर में जाकर देव विग्रह की पूजा अर्चना करते हैं, इसके बाद पंचकोसी यात्रा करने के बाद फिर राजीव लोचन के मंदिर में जाते हैं। पूजा करने के बाद आटका का प्रसाद और चावल, कपड़े एवं पैसे अपृत करते हैं। आटका है चावल से बने पीड़िया नाम की मिठाई। यह छत्तीसगढ़ की मुख्य उपज धान का प्रतीक स्वरुप नैवेद्य है। राजीव लोचन के मंदिर में पूजा करने के बाद यात्री जाते हैं संगम पर स्थित उत्पलेश्वर शिव (कुलेश्वर नाथ) मंदिर में। वहां दर्शन पूजा करके पटेश्वर महादेव के दर्शन करने पटेवा गांव जाते हैं। यात्रा का यह प्रथम पड़ाव है। पटेवा का प्राचीन नाम है पट्टनापुरी। पटेवा राजिम से 5 कि.मी. दूर है। पटेश्वर महादेव ""सद्योजात'' नाम वाली भगवान शम्भु की मूर्ति कहें जातें हैं। इनकी अद्धार्ंगिनी हैं भगवती अन्नपूर्णा, हम कह सकते हैं कि ये अन्नमयकोश की प्रतीक हैं। वहां पूजा करते समय जो मन्त्र उच्चारण करते हैं, उसमें अन्न की महिमा का वर्णन किया गया है। उस मन्त्र में कहते हैं कि अन्न ही ब्रह्म है, इस प्रकार पटेश्वर महादेव ""अन्नब्रह्म'' के रुप में पूजे जाते हैं। यात्री यहां पहुंचकर रात में विश्राम करते हैं और सुबह शिवजी के तालाब में नहाकर पूजा अर्चना करके चल पड़ते हैं, अगले पड़ाव की ओर। चम्पकेश्वर महादेव - चम्पकेश्वर महादेव का स्वयं-भू लिंग यहां जब प्रतिष्ठित हुआ तब शिव भगवान को ही पूजते थे यहां, बाद में वल्लभाचार्य के कारण यह एक वैष्णव पीठ के रुप में भी प्रतिष्ठित हुआ। शैव एवं वैष्णव सम्प्रदायों के संगम स्थल के रुप में एकता का प्रतीक बन गया। इसके बाद यात्री जाते हैं ब्राह्मनी नाम के गांव में जहां ब्रह्मकेश्वर महादेव की पूजा अपंण करते हैं। ब्रह्मकेश्वर महादेव - चम्पारण से 9 कि.मी. दूरी पर उत्तर पूर्व की ओर ब्रह्मनी नाम का एक गांव है जो ब्रह्मनी नदी या बधनई नदी के किनारे अवस्थित है। ब्रह्मकेश्वर महादेव में शम्भू की ""अधोर'' वाली मूर्ति है। उमा देवी इनकी शक्ति हैं। अधोर महादेव या ब्रह्मकेश्वर महादेव, ब्रह्म के आनन्दमय स्वरुप में पूजे जाते हैं। ऐसा विश्वास करते हैं लोग कि इस अभिनन्दमय स्वरुप को जो एकबार पहचान लेते हैं, वे कभी भी भयभीत नहीं होते। बधनई नदी के किनारे एक कुंड है जिसके उत्तरी छोरपर ब्रह्मकेश्वर महादेव का मन्दिर है। इस कुंड में जल का स्रोत है जिसे श्वेत या सेत गंगा के नाम से जानते हैं लोग। ब्रह्मकेश्वर महादेव की पूजा करने के बाद यात्री चल पड़ते हैं किंफगेश्वर नगर की ओर। राजिम से 16 कि.मी. (पूर्व दिशा) की दूरी पर है यह किंफगेश्वर नगर। यहां स्थित है फणिकेश्वर महादेव का मंदिर, फणिकेश्वर महादेव में है शम्भू की ""ईशान'' नाम वाली मूर्ति। इनकी अद्धार्ंगिनी हैं अंबिका। ऐसा कहते हैं कि फणिकेश्वर महादेव प्रतीक है ""विज्ञानमय कोश'' के और वे भक्तों को शुभगति देते हैं। यहां से यात्री चल पड़ते हैं कोपरा गाँव की ओर। राजिम से १६ कि.मी. की दूरी पर यह गांव है। यहां है कर्पूरेश्वर महादेव का मंदिर। कुछ लोग उन्हें कोपेश्वर नाथ नाम से जानते हैं। ये जगह है पंचकोसी यात्रा का आखरी पड़ाव। कोपरा गांव के पश्चिम में ""दलदली'' तालाब है, उसी तालाब के भीतर, गहरे पानी में यह मंदिर हैं। इस तालाब को शंख सरोवर भी कहा जाता है। watch fully video - https://youtu.be/vqLL5wsbvW4 Facebook :- https://www.facebook.com/Chhattisgarr... Twitter : - https://twitter.com/Chhattisgarridr Instagram :- https://www.instagram.com/chhattisgar... My Blog : - https://chhattisgarhrider.blogspot.com/ #panchkoshimandir #पंचकोशीधाम



कुलेश्वर नाथ (राजिम) चम्पेश्वर नाथ (चम्पारण्य) ब्राह्मकेश्वर (ब्रह्मणी), पाणेश्वर नाथ (किंफगेश्वर) कोपेश्वर नाथ ( कोपरा)
Kuleshwar Mahadev Rajim , Champeshwar Nath Champaranya , Barmhakeshwar nath Bamhani , Paneshwar Nath Fingeshwar , Kopeshwar Nath Kopra Panch Koshi Temple
राजिम - छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक केन्द्र
प्राचीनकाल से राजिम छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। इतिहासकारों, कलानुरागियों और पुरातत्वविदों के लिए राजिम एक आकर्षण का केन्द्र है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से राजिम 45 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा गया है। राजिम में पैरी, सोंढूर और महानदी का ""त्रिवेणी संगम'' है।
राजिम में राजीवलोचन और कुलेश्वरनाथ का मंदिर बहुत विख्यात है। राजीवलोचन मंदिर राजिम के सभी मंदिरों में सबसे पुराना है। यह स्थान शिव और वैष्णव धर्म का संगम तीर्थ है। राजिम के बारे में बहुत सी किंवदंतियां प्रचलित हैं।
यहां पंचकोसी यात्रा की जाती है जिसके बारे में कहानी इस प्रकार है -
एक बार विष्णु ने विश्वकर्मा से कहा कि धरती पर वे एक ऐसी जगह उनके मंदिर का निर्माण करेंे, जहां पांच कोस के अन्दर शव न जला हो। अब विश्वकर्मा जी धरती पर आए, और ढूंढ़ते रहे, पर ऐसा कोई स्थान उन्हें दिखाई नहीं दिया। उन्होंने वापस जाकर जब विष्णु जी से कहा तब विष्णु जी एक कमल के फूल को धरती पर छोड़कर विश्वकर्मा जी से कहा कि ""यह जहां गिरेगा, वहीं हमारे मंदिर का निर्माण होगा''। इस प्रकार कमल फूल के पराग पर विष्णु भगवान का मन्दिर है और पंखुड़ियों पर पंचकोसी धाम बसा हुआ है। कुलेश्वर नाथ (राजिम) चम्पेश्वर नाथ (चम्पारण्य) ब्राह्मकेश्वर (ब्रह्मणी), पाणेश्वर नाथ (किंफगेश्वर) कोपेश्वर नाथ ( कोपरा)।
यात्रा के दिन यात्री पहले राजीव लोचन के मंदिर में जाकर देव विग्रह की पूजा अर्चना करते हैं, इसके बाद पंचकोसी यात्रा करने के बाद फिर राजीव लोचन के मंदिर में जाते हैं। पूजा करने के बाद आटका का प्रसाद और चावल, कपड़े एवं पैसे अपृत करते हैं। आटका है चावल से बने पीड़िया नाम की मिठाई। यह छत्तीसगढ़ की मुख्य उपज धान का प्रतीक स्वरुप नैवेद्य है।
राजीव लोचन के मंदिर में पूजा करने के बाद यात्री जाते हैं संगम पर स्थित उत्पलेश्वर शिव (कुलेश्वर नाथ) मंदिर में। वहां दर्शन पूजा करके पटेश्वर महादेव के दर्शन करने पटेवा गांव जाते हैं। यात्रा का यह प्रथम पड़ाव है। पटेवा का प्राचीन नाम है पट्टनापुरी। पटेवा राजिम से 5 कि.मी. दूर है।
पटेश्वर महादेव ""सद्योजात'' नाम वाली भगवान शम्भु की मूर्ति कहें जातें हैं। इनकी अद्धार्ंगिनी हैं भगवती अन्नपूर्णा, हम कह सकते हैं कि ये अन्नमयकोश की प्रतीक हैं। वहां पूजा करते समय जो मन्त्र उच्चारण करते हैं, उसमें अन्न की महिमा का वर्णन किया गया है। उस मन्त्र में कहते हैं कि अन्न ही ब्रह्म है,
इस प्रकार पटेश्वर महादेव ""अन्नब्रह्म'' के रुप में पूजे जाते हैं।
यात्री यहां पहुंचकर रात में विश्राम करते हैं और सुबह शिवजी के तालाब में नहाकर पूजा अर्चना करके चल पड़ते हैं, अगले पड़ाव की ओर।
चम्पकेश्वर महादेव -
चम्पकेश्वर महादेव का स्वयं-भू लिंग यहां जब प्रतिष्ठित हुआ तब शिव भगवान को ही पूजते थे यहां, बाद में वल्लभाचार्य के कारण यह एक वैष्णव पीठ के रुप में भी प्रतिष्ठित हुआ। शैव एवं वैष्णव सम्प्रदायों के संगम स्थल के रुप में एकता का प्रतीक बन गया।
इसके बाद यात्री जाते हैं ब्राह्मनी नाम के गांव में जहां ब्रह्मकेश्वर महादेव की पूजा अपंण करते हैं।
ब्रह्मकेश्वर महादेव - चम्पारण से 9 कि.मी. दूरी पर उत्तर पूर्व की ओर ब्रह्मनी नाम का एक गांव है जो ब्रह्मनी नदी या बधनई नदी के किनारे अवस्थित है।
ब्रह्मकेश्वर महादेव में शम्भू की ""अधोर'' वाली मूर्ति है। उमा देवी इनकी शक्ति हैं। अधोर महादेव या ब्रह्मकेश्वर महादेव, ब्रह्म के आनन्दमय स्वरुप में पूजे जाते हैं। ऐसा विश्वास करते हैं लोग कि इस अभिनन्दमय स्वरुप को जो एकबार पहचान लेते हैं, वे कभी भी भयभीत नहीं होते।
बधनई नदी के किनारे एक कुंड है जिसके उत्तरी छोरपर ब्रह्मकेश्वर महादेव का मन्दिर है। इस कुंड में जल का स्रोत है जिसे श्वेत या सेत गंगा के नाम से जानते हैं लोग।
ब्रह्मकेश्वर महादेव की पूजा करने के बाद यात्री चल पड़ते हैं किंफगेश्वर नगर की ओर।
राजिम से 16 कि.मी. (पूर्व दिशा) की दूरी पर है यह किंफगेश्वर नगर। यहां स्थित है फणिकेश्वर महादेव का मंदिर, फणिकेश्वर महादेव में है शम्भू की ""ईशान'' नाम वाली मूर्ति। इनकी अद्धार्ंगिनी हैं अंबिका।
ऐसा कहते हैं कि फणिकेश्वर महादेव प्रतीक है ""विज्ञानमय कोश'' के और वे भक्तों को शुभगति देते हैं।
यहां से यात्री चल पड़ते हैं कोपरा गाँव की ओर। राजिम से १६ कि.मी. की दूरी पर यह गांव है। यहां है कर्पूरेश्वर महादेव का मंदिर। कुछ लोग उन्हें कोपेश्वर नाथ नाम से जानते हैं। ये जगह है पंचकोसी यात्रा का आखरी पड़ाव। कोपरा गांव के पश्चिम में ""दलदली'' तालाब है, उसी तालाब के भीतर, गहरे पानी में यह मंदिर हैं। इस तालाब को शंख सरोवर भी कहा जाता है।
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