Kankeshwar Mahadev Kani Korba (Drone Video) कनकेश्‍वर महादेव मंदिर || भोले भंडारी का एक अनोखा धाम ||


 

कनकेश्‍वर महादेव मंदिर: भोले भंडारी का एक अनोखा धाम

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में हसदेव नदी के तट पर कनकी नाम का एक छोटा सा गांव है. जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर कनकी का कनकेश्वर महादेव मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान है. छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में हसदेव नदी के तट पर कनकी नाम का एक छोटा सा गांव है. जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर कनकी का कनकेश्वर महादेव मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान है. इसे चक्रेश्वर महादेव मंदिर भी कहा जाता है. कनकी रायपुर से 197 किलोमीटर की दूरी पर कोरबा जिले में स्थित है.


यहां के आचार्य मनोज शर्मा कहते हैं, ‘मान्यता है कि एक गाय रोज जाकर इस शिवलिंग पर दूध चढ़ाती थी. एक दिन गाय को ग्वाले ने ऐसा करते देख लिया. गुस्से में उसने जहां दूध गिर रहा था वहां डंडे से प्रहार कर दिया. जैसे ही उसने डंडा मारा कुछ टूटने की आवाज आई और कनकी (चावल के टुकड़े) के दाने वहां बिखर गए. उस जगह की सफाई करने पर वहां एक टूटा हुआ शिवलिंग मिला. बाद में इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया गया.’


उन्होंने बताया कि शिवलिंग के पास कनकी के दाने पड़े होने के कारण मंदिर का नाम कनकेश्वर महादेव रखा गया. मंदिर के स्थापित होने के बाद वहां पर गांव भी बस गया जिसका नाम कनकी रखा गया. हर साल सावन में यहां भोले के भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है.


इतिहास


ऐतिहासिक दृष्टि से मंदिर अति प्राचीन है। स्वयंभू शिवलिंग के स्थापित होने का संवत अथवा ईसा सन स्पष्ट नहीं है। मंदिर का निर्माण कोरबा जमींदार परिवार ने 200 साल पहले किया था। 50 ऊंचे मंदिर का निर्माण स्थापत्य कला को दर्शाता है। जनश्रुति के अनुसार गांव के ही बैजू यादव ने शिवलिंग की खोज की थी, जिनकी 22वीं पीढ़ी वर्तमान में पूजा कर रही है।


कनकेश्वर के नाम से विराजमान हैं शिव


मंदिर में गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग को कनकेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। शिवलिंग का निर्माण बलुआ पत्थर से हुआ है। मान्यता के अनुसार जब शिवलिंग की जानकारी बैजू नामक चरवाहा को हुई तब उसने उक्त स्थल की खोदाई की। खोदते समय शिवलिंग का ऊपरी सिस्स टूट गया। लगातार पानी चढ़ावा के कारण टूटे स्थान से पत्थर का क्षरण हो रहा था। लिहाजा शिविलिंग में चांदी का कवच लगा दिया गया है।


कनकी चढ़ाने की महिमा


कनकेश्वर शिव नाम पड़ने के बारे में पुजारी पुरूषोत्तम का कहना है कि शिवलिंग का प्राकट्य जब हुआ, उस समय शिवलिंग में कनकी रखा हुआ था। चावल के टुकड़े को छत्तीसगढ में कनकी कहा जाता है। कनकी का चढ़ावा होने से शिवलिंग को कनकेश्वर महादेव के नाम से जाना गया। कनकेश्वर महादेव के कारण यहां के बसाहट गांव का नाम भी कनकी पड़ा। पुजारी का कहना है कि शिवलिंग में चावल चढ़ाने से भगवान शिव दरिद्री दूर करते हैं।


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