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Showing posts from May, 2020

पोरथ का शिव मंदिर

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पोरथ का शिव मंदिर (PORATH SHIV TEMPLE) यह रायगढ़ से 35 किलोमीटर की दूरी में है और यहां बहुत ही भव्य मेला लगता है जोक मकर संक्रांति के दिन होता है और यहां पर बहुत बड़ी पूजा भी होती है शिव जी का तो दोस्तों मकर संक्रांति के दिन आप रायगढ़ में रहते हो या आस पास तो एक बार जरूर जाइए और पोरथ का मेला घूमिये और मंदिर का दर्शन कीजिए और यहां पर आप नाव (बोटिंग) भी कर सकते हो यहां नदी के बगल में मंदिर है और यहां से मंदिर का नजारा बहुत ही खूबसूरत दिखाई देता है यहाँ पर आप फोटोशू ट के लिए वि जा सकते है यहाँ मंदिर नदी में जब बाढ़ आता है तो आधा मंदिर बाढ़ में दुब जाता है यहाँ पर आप लोग पिकनिक वि मना सकते हो # CGRIDER   # CHHATTISGARHRIDER   # HARSHVERMA   # CGRIDERBOYS   # raigarh # chhattisgarh   # raipur   # bhilai   # bilaspur   # india   # durg   # cg   # korba   # bastar   # dhamtari   # rajnandgaon   # jagdalpur   # raipurdiaries   # chhattisgarhtourism   # chhattisgarhi   # raipurian   # sarangarh   # ambikapur   # kawardha   # bilaspurians   # kharsia   # jashpur   # love   # instagram   # raipurbl
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I wish  # you  and your  # family  be protected and  # blessed  by  # Allah   # Almighty . He is the only  # savior .  # Ramadan   # Mubarak !

कला का नायाब नमूना है “ओना-कोना” छत्तीसगढ़ के एक कोने में बसा है ये भव्य मंदिर, धमतरी जिले से लगभग 35-40 कि.मी. दूर NH-30 जगदलपुर रोड में स्थित है यह बालोद जिले के गुरुर विकासखंड के कोने में महानदी के तट पर स्थित है जहां पर गंगरेल बांध का डुबान क्षेत्र आता है यह गांव एक पहाड़ी के नीचे स्थित है यहां आने के लिए उबड़ खाबड़ रास्ते को पार करना पड़ता है वैसे तो यह जगह प्राकृतिक रूप से काफी खूबसूरत है गंगरेल बांध का डुबान क्षेत्र होने की वजह से यह और भी ज्यादा खूबसूरत लगता है यहां स्थानीय मछुआरों द्वारा बोटिंग की सुविधा भी आने वाले लोगों को दी जाती है, हाल ही में कुछ वर्षों से यह जगह यहां निर्मित हो रहे भव्य मंदिर के लिए काफी चर्चित है जिसे धमतरी के किसी व्यवसायी द्वारा बनाया जा रहा है, एक और बात है जो अधिकतर लोगों को नहीं पता होती गांव वालों के अनुसार यहां पर बहुत साल पहले सूफी संत (बाबा फरीद) आए थे उन्होंने यहां बैठ कर तपस्या की थी तब से यहां पर एक धुनी जलाई गई है, जो कि आज भी निरंतर गांव वालों के सहयोग से जल ही रही है कहते हैं यहां पर आने वाले और उनके मानने वाले लोगों की मुरादें पूरी होती है यहां पर एक मजार का भी निर्माण किया गया है जो की मंदिर के पास में ही लगा हुआ है यह जगह अब हमारे देश की गंगा जमुनी तहजीब की एक मिसाल पेश करता है#ओनाकोनामंदिरधमतरीछत्तीसगढ़ #OnaKonaMandirDhamtariChhattisgarh #DhamtariOnaKonaMandir #OnaKonaMandirChhattisgarh #Onakonamandircg #OnakonamandirChhattisgarh #onakonamandir #angarmotimandirgangrelDhamtari #DudhawaDamDhamtari #HasdeoBangoDamDhamtari #SondurDamDhamtari #cgrider #onakona mandir dhamtari #onakonamandirbalod#OnakonamandirBalod#Onakonatemple#Onakonamandir#OnakonaDhamtari #OnakonaDhmtari #OnakonaMnadirBalod#Onakonabalod #OnakonaMnadirbalod

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 रायपुर से धमतरी होते हुए 140 किलो मीटर पर नगरी-सिहावा है, यहाँ रामायण कालीन सप्त ॠषियों के प्रसिद्ध आश्रम हैं। सिहावा मेंं सप्त ऋषियों के आश्रम विभिन्न पहाडिय़ों मेंं बने हुये हैं। उनमेंं मुचकुंद आश्रम, अगस्त्य आश्रम, अंगिरा आश्रम, श्रृंगि ऋषि, कंकर ऋषि आश्रम, शरभंग ऋषि आश्रम एवं गौतम ऋषि आश्रम आदि ऋषियों का आश्रम है। श्री राम ने अपने वनवास के समय दण्डाकारण्य मेेंं स्थित आश्रम मेंं जाकर यहां बसे ऋषियों से भेंट कर सिहावा मेंं ठहर कर कुछ समय व्यतीत किया। सिहावा महानदी का उद्गम स्थल है। नगरी से आगे चल कर लगभग 10 किलोमीटर पर भीतररास नामक ग्राम है। वहीं पर श्रृंगि पर्वत से महानदी निकली है। कर्णेश्वर महादेव मंदिर, गणेश घाट, हिरंगी हाथी खोट का आश्रम, दंतेश्वरी की गुफा, अमृत कुंड और महामाई मंदिर उल्लेखनीय पवित्र स्थल हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। यहीं से महानदी का उद्गम होता है। सिहावा पर्वत छत्तीसगढ़ राज्य के धमतरी जिले के नगरी नगरी विकास खंड के अंतर्गत आता है जहां से महानदी का उद्गम एक कमंडल से हुआ माना जाता है उस पर्वत ने ऋषि मुनि के कमंडल जब लुढ़क कर

छत्तीसगढ़ का गोवा गंगरेल बांध, जिसे रविशंकर जलासय भी कहते है , भारत के छत्तीसगढ़ में स्थित है। यह महानदी नदी के पार बनाया गया है।महानदी पर बने इस बेहद खूबसूरत बांध में अधाह जल राशि किसी समंदरी द्वीप के जैसा अहसास कराती है। यह धमतरी जिले में स्थित है, धमतरी से लगभग 15 किमी और रायपुर से लगभग 90 किमी दूर है। यह छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित है। इसे रविशंकर सागर बांध के नाम से भी जाना जाता है। राजधानी रायपुर से यह 90 किमी की दूरी पर स्थित है। गंगरेल बांध का निर्माण सन 1978 में हुआ। इसका लोकार्पण तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों किया गया था। यह छत्तीसगढ़ का सबसे लंबा बांध है। यह बांध वर्षभर सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराता है, जिससे इसके आस-पास के क्षेत्रों में धान की पैदावार बहुतायात में होती है और इसी वजह से छत्तीसगढ़ धान का कटोरा कहलाता है। यहां के मैदानी क्षेत्र के किसान प्रति वर्ष दो से तीन फसलों का उत्पादन कर सकते हैं। करीब 1830 मीटर लंबा और सौ फिट ऊंची इस बांध के पानी से लगभग 57000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है। इसके अलावा ये भिलाई स्टील प्लांट और नई राजधानी रायपुर को भी पानी प्रदान उपलब्ध कराता है। बांध में 10 मेगावॉट की हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर प्लांट भी काम कर रहा है। और इसे मिनी गोवा वि कहते है जिसमे बहोत सारे जहाज है यहाँ पर आप लोग पानी में एडवेंचर वि कर सकते है यहाँ होटल वि है जो की लकड़ी से बना हुआ है |करीब 1 किलोमीटर के दायरे में इस आर्टिफिशियल बीच को तैयार किया गया है जो ट्रायबल टूरिज्म सर्किट का हिस्सा है। बांध का यह तट किसी समुद्री तट की तरह नजर आता है और यहां उसी स्तर की सुविधाएं विकसित की गई हैं। यहां एथनिक टूरिस्ट डेस्टिनेशन डेवलपमेंट के अंतर्गत लॉग हट्स, कैफेटेरिया, गार्डन, पगोड़ा, वॉटर स्पोर्ट्स की सुविधा विकसित की गई है। पैरासीलिंग, प्लायबोर्ड, ऑकटेन, जार्बिन बॉल, पी.डब्ल्यू.सी.बाईक, बनाना राईड, सौ सीटर शिप, वॉटर सायकल, कयाक, पायडल बोट्स आदि का लुत्फ सैलानी यहां ले सकते हैं। #MiniGoa #गंगरेल बांध #gangreldam #MiniGoa #cgrider #chhattisgarhrider #मिनिगोछत्तीसगढ़ #छत्तीसग #विसीटछत्तीसगढ़ #गोछत्तीसगढ़ #gochhattisgarh #incrediblechhattisgarh #visitchhattisgarh #unxplorechhattisgarh #riderboysandgirls #riderboyschhattisgarh #gangreldamdhamtari #dhamatati #morchhattisgarh #hamargavaigaon #ravishankarjalasay #chhattisgarh #harshverma #churawanverma #cg13ag1566 #chhattisgarh #gangreldam #thelocalguide #गंगरेलबांध #rider #indianrider #riderindia #india #bikerchhattisgarh

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कुलेश्वर मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के गरियाबंद जिले में राजिम नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है। पुरातत्वीय धार्मिक एवं सांस्कृति महत्व का स्थल राजिम रायपुर से 48 कि॰मी॰ दक्षिण में महानदी के दक्षिण तट पर स्थित है जहां पैरी एवं सोंढूर नदी का महानदी से संगम होता है। इसका प्राचीन नाम 'कमल क्षेत्र' एवं 'पद्मपुर' था। इसे 'छत्तीसगढ़ का प्रयाग' माना जाता है। राजिम कें राजीव लोचन देवालय में विष्णु भगवान की पूजा होती है। राजेश्वर, दानेश्वर एवं रामचन्द्र मंदिर इस समूह के अन्य महत्वपूर्ण मंदिर है। कुलेश्वर शिव मंदिर संगम स्थली पर ऊंची जगती पर निर्मित है। नवीं शती ई. में निर्मित यह मंदिर पूर्वाभिमुखी है। इस मंदिर में गर्भगृह, अन्तराल एवं मण्डप है। मण्डप की भित्ति में आठ पंक्तियों का क्षरित-अस्पष्ट प्रस्तर अभिलेख जड़ा हुआ है। यहां क्षेत्रीय कला एवं स्थापत्य से संबंधी दुर्लभ कलात्मक प्रतिमाएं मण्डप में दर्शनीय हैं।यह काफी प्राचीन मंदिरों में इसकी गिनती किया जाता है मान्यता है कि यहाँ का शिवलिंग कि स्थापना माता सीता ने अपने हाथो से किया था और राम लक्ष्मण सीता तीनो मिलकर देवो के देव कि यही पर विधि विधान से पूजा अर्चना किया था जिस कारण यह स्थान परम तीर्थ के रूप में पूजा गया यहाँ पर भारी मात्रा में शिव जी के भक्त बाबा के दरबार में आते है यहाँ पर सबसे ज्यादा भीड़ महाशिवरात्रि को देखा जाता है कहते है इस दिन बाबा सहज जल अर्पण मात्र से ही प्रसन्न हो जाते है और मन चाही वरदान दे देते है जिसके कारण यहाँ लाखो कि संख्या में भीड़ उमड़ती है बाबा के जयकारे से पूरा नदी तट कम्पाय मान हो जाता है जो देखने लायक होता है यहाँ पर सावन सोमवारी में बाबा कि जल अर्पण करने के लिए दूर दूर से भक्त आते है इस त्रिवेणी संगम में बरसात के दिनों में कितना भी जल प्रवाह होते रहे मगर भक्त जन बाबा कि पूजा अर्चना करना बंद नही करते और कुछ तो नौका से बाबा कि पूजा अर्चना करने जाते है इससे पता लगता है कि बाबा के उपर लोंगो कि अटूट श्रधा देखी जा सकती है छत्तीसगढ़ को भगवान राम के वनवास काल के पथगमन मार्ग के रूप में चिह्नित किया गया है और इस तथ्य को प्रमाणित करते हुए कई अवशेष यहां मौजूद हैं। इन्हीं में से एक प्रतीक है राजिम का कुलेश्वर महादेव मंदिर। महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जिस जगह मंदिर स्थित है, वहां कभी वनवास काल के दौरान मां सीता ने देवों के देव महादेव के प्रतीक रेत का शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की थी। आज जो मंदिर यहां मौजूद है उसका निर्मांण आठवीं शताब्दी में हुआ था #कुलेश्वरमंदिरराजिमरायपुर #KuleshwarMahadevRajimgariyabandh #Kuleshwarmahadevrajim #kuleshwartemplerajim #panchkoshitemple #panchkoshidham #Panch koshi Mandir #Rajimlochan #Rajim #gariyabandh #trivenisangam #cgrider #chhattisgarhrider #rajim pryag ganj #chhattisgarhpryag #mahanadiaarti #rajimlochanmandir #kuleshwar Nath #kuleshwarnathtemple #kuleshwarmahadev #rajimkuleshwarnath #kuleshwarnathtem #kuleshwarnathtemple #harshverma #chuwaranverma #कुलेश्वरमंदिर #राजिम #कुलेश्वरमहादेवमंदिरराजिम #त्रिवेणीसंगम #dronevideorajim #rajimmaghimela #rajimmela #rajimpanchkoshidham #panchkoshidham

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कुलेश्वर मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के गरियाबंद जिले में राजिम नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है। पुरातत्वीय धार्मिक एवं सांस्कृति महत्व का स्थल राजिम रायपुर से 48 कि॰मी॰ दक्षिण में महानदी के दक्षिण तट पर स्थित है जहां पैरी एवं सोंढूर नदी का महानदी से संगम होता है। इसका प्राचीन नाम 'कमल क्षेत्र' एवं 'पद्मपुर' था। इसे 'छत्तीसगढ़ का प्रयाग' माना जाता है। राजिम कें राजीव लोचन देवालय में विष्णु भगवान की पूजा होती है। राजेश्वर, दानेश्वर एवं रामचन्द्र मंदिर इस समूह के अन्य महत्वपूर्ण मंदिर है। कुलेश्वर शिव मंदिर संगम स्थली पर ऊंची जगती पर निर्मित है। नवीं शती ई. में निर्मित यह मंदिर पूर्वाभिमुखी है। इस मंदिर में गर्भगृह, अन्तराल एवं मण्डप है। मण्डप की भित्ति में आठ पंक्तियों का क्षरित-अस्पष्ट प्रस्तर अभिलेख जड़ा हुआ है। यहां क्षेत्रीय कला एवं स्थापत्य से संबंधी दुर्लभ कलात्मक प्रतिमाएं मण्डप में दर्शनीय हैं।यह काफी प्राचीन मंदिरों में इसकी गिनती किया जाता है मान्यता है कि यहाँ का शिवलिंग कि स्थापना माता सीता ने अपने हाथो

जय जोहार संगवारी हूं मैं हूं हर्ष आज मैं आपको लेकर कांकेर का गढ़िया पहाड़ इतिहास | गढ़िया पहाड़ (Gadiya Pahad) का इतिहास हजारों साल पुराना है। जमीन से करीब 660 फीट ऊंचे इस पहाड़ पर सोनई-रुपई नाम का एक तालाब है, जिसका पानी कभी सूखता नहीं है। इस तालाब की खासियत यह भी है कि सुबह और शाम के वक्त इसका आधा पानी सोने और आधा चांदी की तरह चमकता है। यहां हर साल महाशिवरात्रि पर भव्य मेला लगता है। यहां हर साल गढ़िया महोत्सव भी आयोजित किया जाता है, जिसमें लोककला की बहुरंगी छटा देखने को मिलती है। किंवदती है कि गढ़िया पहाड़ पर करीब 700 साल पहले धर्मदेव कंड्रा नाम के एक राजा का किला हुआ करता था। राजा ने ही यहां पर तालाब का निर्माण कराया था। धर्मदेव की सोनई और रुपई नाम की दो बेटियां थीं। वो दोनों इसी तालाब के आसपास खेला करती थीं। एक दिन दोनों तालाब में डूब गईं। तब से यह माना जाता है सोनई-रुपई की आत्माएं इस तालाब की रक्षा करती हैं, इसलिए इसका पानी कभी नहीं सूखता। पानी का सोने-चांदी की तरह चमकना सोनई-रुपई के यहां मौजूद होने के रूप में देखा जाता है। टूरी हटरी गढ़िया किले की बस्ती का हृदय स्थल टूरी हटरी है। यह दैनिक बाजार के साथ जन सम्मेलन, मेला, सभा आदि के उपयोग आता था। उस जमाने के मिट्टी के बर्तन व ईंट-खपरों के टुकड़े आज भी यहां मिलते हैं। पहाड़ी के ऊपर एक बड़ा सा मैदान स्थित है। उस मैदान में किले में निवास करने वाले राजा और उनके सैनिकों की आवश्यकता की वस्तुएं बिक्री के लिए आती थीं। इस बाजार में विक्रय करने के लिए लड़कियां सामग्री लाया करती थीं। इसी कारण इसका नाम टूरी हटरी (बाजार) पड़ा। फांसी भाठा राजशाही के जमाने में फांसी भाठा में अपराधियों को मृत्यु दंड दिया जाता था। यहां अपराधियों को ऊंचाई से नीचे फेंका जाता था। एक बार कैदी ने अपने साथ सिपाही को भी खींच लिया। इसके बाद से अपराधियों के हाथ बांधकर उन्हें दूर से बांस से धकेला जाने लगा। झंडा शिखर के पास ही फांसी भाठा स्थित है। जोगी गुफा मेलाभाटा की ओर से पहाड़ी के ऊपर जाने के लिए कच्चा मार्ग बना हुआ है। इस मार्ग में एक विशाल गुफा स्थित है। कहा जाता हैं कि उस गुफा में एक सिद्ध जोगी तपस्या करते थे, जिनका शरीर काफी विशाल था। वहां उनकी विशाल खड़ऊ आज भी मौजूद है। इस कारण इसे जोगी गुफा कहा जाता है। झंडा शिखर गढ़िया पहाड़ को दूर से देखने में जो सबसे ज्यादा आकर्षित करता है, वह है गढ़िया पहाड़ का मुकुट झंडा शिखर। इस स्थान पर राजा का राजध्वज फहराया जाता था। जिस लकड़ी के खंभे पर झंडा फहराया जाता था, उसके अवशेष आज भी मौजूद हैं। कहा जाता है कि जब राजा किले में रहते थे, तभी झंडा शिखर पर ध्वज लहराता था। झंडे से ही राजा की मौजूदगी का पता प्रजा को चलता था। खजाना पत्थर राजा का महल जिस स्थान पर था, वहां एक विशाल ऊंचा पत्थर है। प्रतीत होता है कि उसमें पत्थर का ही दरवाजा बना हुआ है। किंवदती है कि इस पत्थर के नीचे राजा ने अपना खजाना छुपाया हुआ है। इसी कारण इसे खजाना पत्थर कहते हैं। छुरी पगार सोनई रूपई तालाब के पास ही एक गुफा है, जिसमें जाने का मार्ग एकदम सकरा है किंतु उस गुफा में प्रवेश करने के बाद विशाल स्थान है। यहां सैकड़ों लोग बैठ सकते हैं। गुफा के मार्ग में छुरी के समान तेज धारदार पत्थर हैं। इसी कारण इसे छुरी गुफा कहा जाता है। कहते हैं कि किले में दुश्मनों द्वारा हमला होने पर राजा अपने सैनिकों के साथ इसी गुफा में छुप जाते थे। #kankergadiyapahad #kanker #gadiyapahad #गढ़ियापहाड़ #kankerdronevideo #dronevideo #cgrider #kankerhistory #gadiyapahadhistory #kankernews #कांकेरपहाड़ #kankervilleynationalpark #kankerghati #keshkal #raipur #keshkalghati #kankerpahad #Gadiyapahad #talab #gufa #cave #kanker #picnicspot #utarbastarkanker #Chhattisgarh #Explorechhattisgarh #cgrider #chhattisgarhrider #motovllogger #motorider #riderboys #motovlogger #kankercg #kankerpicnicspot #kankerpicnicpoint #picnicpointchhattisgarh #naturechhattisgarh

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#छत्तीसगढ़ #राइडर की ओर से  आप सभी को बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं  🙏🙏 #buddhapurnima #buddhatemple #mainpat #cgrider #morchhattisgarh #hamargavaigaon #chhattisgarhrider #mainpatmonestry #monastary #buddhatemple #GuruRabindranathJayanti #BuddhaPurnima #BuddhaPurnima2020 #corona #covin19 #lockdown #coronaupdate #coronaupdate #gochhattisgarh #thatschhattisgarh #wowcg #chhattisgarh tourism #visitcg #chhattisgarh #incredibleindia
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मलाजकुंडम जलप्रपात जय जोहार संगवारी हो मैं हूं हर्ष आज मैं आपके लिए लेकर आया हूं मलाजकुडूम जलप्रपात का छोटा सा जानकारी कांकेर मुख्यालय से लगभग 17 किमी. की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 30 से गढ़पिछवाड़ी होते हुए मलाजकुड़ुम जाने के लिए पक्का मार्ग है। मलाजकुड़ुम झरने की खूबसूरती देखने के लिए जिले के अलावा अन्य जिलों से भी पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। स्कूल व कालेजों की छुट्टियां होते ही युवाओं का जमघट लगने लगता है। पहाड़ के नीचे स्थित इस गांव का नाम भी मलाजकुड़ुम है और उसी के नाम से इस झरने को  जाना जाता है। यह ग्राम र्मदापोटी ग्राम पंचायत के अंर्तगत आता है। जिला मुख्यालय के पास मलाजकुड़ुम ऐसा स्थल है जहाँ पर नए वर्ष का जश्न मनाने और पिकनिक मनाने के लिए कांकेर के अलावा अन्य जिलों से भी लोग पहुंचते है। शहर के बीचोबीच से बहने वाली दूधनदी कांकेर की लाइफ लाइन कहलाती है। दो दशक पहले तक साल के बारहों महीने बहने वाली दूधनदी में अब मात्र बारिश के महीनों में पानी रहता है। गर्मियों में तो नदी पूरी तरह सूख जाती है। मलाजकुंडम दूध नदी का जलप्रपात है। इस जलप्रपात का दृश्य नीचे से मनो